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उसका रिश्ता जरूर माओ से होगा (कविता) / दिनकर कुमार

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वह देश के हालात से बेचैन बना रहता है
वह उजड़ती हुई आबादी की पीड़ा को अपने
सीने में सुलगते हुए पाता है उसे अन्याय के
सारे मंज़र चुनौती देते हुए नज़र आते हैं
वह ठण्डे चूल्हों और भूखे बच्चों को देखकर
ईश्वर या भाग्य को नहीं कोसता
वह नदियों को बिकते हुए देखकर
किसानों को आत्महत्या करते हुए देखकर
खेतों को रौंदकर बसाए जा रहे विशेष आर्थिक-क्षेत्र को देखकर
जंगलों को उजाड़कर कारख़ानों को बसते हुए देखकर
गुस्से से अपनी मुट्ठी भींच लेता है
उसका रिश्ता जरूर माओ से होगा

अभी तक उसने गँवाई नहीं है रीढ़ की हड्डी
अभी तक वह शामिल नहीं हुआ है भेड़ों की जमात में
अभी तक उसके सीने में बची हुई है बेचैनी
उसकी आँखों में है बदलाव का मानचित्र
अभी तक वह सच्चा है
इसीलिए उसका रिश्ता जरूर माओ से होगा

उसे घोषित किया जाएगा आन्तरिक सुरक्षा के लिए ख़तरा
फर्जी मुठभेड़ मे उसकी हत्या की दी जाएगी।