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उसका सामना / नवीन दवे मनावत

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मैं जब निकलता था काम पर
वही किसी शुभ कार्य करने हेतु
 हमेशा उसी बच्ची का सामना होता
जो मेरे शुभ कार्य की साक्षी रही है

मैं उसे देख प्रसन्न होता जैसे देवत्व की प्रतिमूर्ति
उसके हाथ में थमा देता
कुछ मुद्रा
जो मेरी मुख मुद्रा की औकाद रखती हो
उसका सामना
मेरे लिये शुकुन का प्रतीक बन गया
वो मेरे हर शुभ कार्य का प्रतीक बन गई
और यह सत्य है
और क्या?
मैं कह रहा हूँ बिल्कुल सत्य

समय की गति
परिणय बंधन की खुशमय घड़ी
उस अबोध बच्ची या बालिका
कुछ दिनों का सुख साम्राज्य
अचानक दुर्भाग्य की वेला आई
एक दिन वह विधवा हो गई
भाग्य अज्ञात मोड़ लेकर अज्ञात लोक में
चला गया!
वही क्रम
उसका एक दिन मेरे से आमना-सामना
मैं अनमना-सा हो गया
उसके प्रति घृणा के अंकुर फूट रहे थे
और बोला
अपशुकुन?
वह अचंभित-सी हो गिर पडी धरती पर
कि आज का सामना
इतना भयानक आभास क्यों दे गया
महाशय की वह खुशी
मुद्रा और मुख मुद्रा की औकाद!

एकाएक
मैं मूड गया पुन: घर की ओर
और प्रणाम किया
आले में स्थापित पाषाण देवी की मूरत को
कुछ पुष्प अर्पित कर
करने लगा शुकुन की तलाश

उसके लिये अंतिम छोर
क्षीण हो गया
और सोचने लगी कि
अपशुकुन मैं कैसे हुई?
अपशुकुन
वही खुशियों का सामना
या स्वार्थ!
या अबोध समय
या पूर्वाग्रसित मानव?
या आज का तथाकथित प्राज्ञ पुरूष
अब मेरा सामना किसी व्यक्ति से नहीं
होगा बस क्षणिक भाग्य से!