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ऊँचाई मृत्यु और उड़ान / देवी प्रसाद मिश्र
Kavita Kosh से
मेरा घर चौथी मंज़िल पर हैं चढ़ते हुए नीचे ही एक बूढ़ा मिला
गया उसने कहा कि बहुत चढ़ना पड़ता हैं मैंने कहा कि घर
तक पहुँचने के लिए यह ऊँचाई ज्यादा नहीं है़ फ़िर मैंने कहा
कि पूरा शहर या तो फिल्मों में दिखता है या मेरी खिड़की से.
उसने कहा कि वह मुझे अपने उपन्यास में दिखता है । मैंने कहा
कि मैं यह सोचता हॅँू कि मेरे मरने के बाद शव नीचे लोने में
कितनी मुश्किल होगी। उसने कहा कि बेहतर होगा तुम अपनी
खिड़की से ऊपर ही उड़ जाना। उसने कहा कि क्या मैं इन
बातों को अपनी कहानी में लिख लूँ तो मैंने कहा कि यह मेरी
कविता में पहले से ही मौजूद हैं - लेकिन आप चाहें तो मेरी
कविता को अपने उपन्यास में शामिल कर सकते है।