भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ऊब / देवेन्द्र कुमार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धूप-बन्द चेहरे
बोल दो हवा से
कुछ और देर ठहरे ।

चाहे - अनचाहे
छूटे चौराहे
पीले आसार
प्यार के पठार हुए
आँखों के
बहरे ।

ऊब ने रची हैं
कुछ अच्छी कविताएँ
गाँठ में समय हो
आ बैठो !

सुनाएँ
तारे अन्धेरे के बच्चे
चितकबरे ।