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ऊहापोह / विमल राजस्थानी

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उठा रहा चहुँदिशि गगन-चुम्बी रोर पश्चाताप का
प्रभु दंड दें हमको त्वरित इस अति भयंकर पाप का
जन-जन की जिह्वा पर चर्चा प्रतिक्षण एक यही है
पूर्ण जाँच के बिना नृपति-निर्णय क्या हुआ सही है !
भावावेश सभी का अपनी सीमा लाँघ गया
मूर्छित हुआ विवेक, क्रोध का कौशल नहीं नया है
जभी असामित क्रोध मनुज पर हावी हो जाता है
अंधा हा जाता है, सही न निर्णय ले पाता है
परकोटे के भीतर शव क्या अन्य नहीं धर सकता ?
शिल्पकार क्या नहीं दूसरों के द्वारा मर सकता ?
अल्प यशस्वी मूर्तिकार क्या डाह न कर सकते थे ?
क्या यह संभव नहीं-प्राण वे उसका हर सकते थे ?
संभव है यह हत्या किसी दूसरे ने की हो
वासव फँस कर भी उबरेगा, बात सोच रक्खी हो
वासव ही दोषी थी, ऐसा सब ने क्यों कर सोचा ?
हाय ! न्याय ने बिना विचारे उसको पटक दबोचा
उसको क्या पड़ी थी कि वह हत्या-सा पाप करेगी ?
विधि है कौन कि जो हम अधमों का संताप हरेगी
हुआ बहुत अन्याय, अधिक और क्या होगा ?
हर पुरजन असहाय, पाप का प्रायश्चित क्या होगा ?
ओ-रे! अधम! पापी! अविवेकी! तरी क्षय हो
बोधिसत्व की क्षमा झरे रे ! सारे देव यदय हों