ऋतु प्रियतमा (सॉनेट) / अनिमा दास
ए शिशिर. शीतल समीरण के सदा सुगंधित सप्तक
उर्वशी -उर की उष्णता.. उर्वी की उमस की गमक
वर्णवारि की वर्षा में हिम स्फटिक का श्वेत आभूषण
क्यों लिखा कादंबरी के कज्जल पर अनंत तपश्चरण?
ए वसंत...यह पर्णपत्र है गौर गात्र का अक्षुण्ण अक्षर
अल्प मौन.. अल्प मुखर...जैसे प्रिय का तृषित अधर
मन पुष्करिणी के शब्द शतदल- सा प्रतिबिंबित मयंक
सौंदर्य सुरभि भर है शून्य वन सा विरहिणी का अंक।
मधुर मृदुल मोह में प्रतीक्षा की प्रतिश्रुति है प्रश्नपूरित
अस्तित्व का अमरत्व नहीं है अमृत अर्घ्य में अनिमित्त
वह्निवाहक यह हृदय है तीव्र ज्वाला का आग्नेय प्रस्तर
है अंतहीन अंतरिक्ष के असंख्य अणु का अभिसर।
वारिद्र के कंठ में पंचवर्ण की वर्णिका ..क्यों है वल्लिका!
क्यों है वैधव्य...व्यतीत यामिनी में..हे मृति माधविका!