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ऋतुराज मे विरहिनी / शिव कुमार झा 'टिल्लू'
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पिया कोना कऽ बिततै फागुन मास अपार औ,
जीवन भेल पहाड़ औ ना
कोइली कुहकै ठाढ़ि पात
होइछ मन मे अघात
एकसरि डूबि रहल छी, अहीं बिनु हम मझधार औ
जीवन भेल पहाड़ औ ना
भ्रमरक गुंजन लागय तीत,
केहेन निष्ठुंर भेलहुँ मीत
कोना कऽ सूखि सकत ई फूटल अश्रुधार औ,
जीवन भेल पहाँड़ औ ना
सखी सभ सदिखन अछि कवदाबय,
बिछुरन रोदन लऽ कऽ आबय
बिहुंसल यौवन पसरल मेघ आ अभिसार औ,
जीवन भेल पहाड़ औ ना
देखिते अबीर गुलालक रंग
विरह बनौलक कलुष उमंग
कहू कोना उठत ई मृत शय्याक कहार औ,
जीवन भेल पहाड़ औ ना