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एक अकेला मेरा मन / रोहित रूसिया
Kavita Kosh से
दुनिया भर की
उथल-पुथल है
एक अकेला मेरा मन
कितने सपने
मचल-मचल के
आते कपड़े बदल-बदल के
कभी समा जाते मुट्ठी में
कभी गिरे हैं फिसल-फिसल के
एक अकेले आईने में
बँटा-बँटा-सा मेरा तन
अहसासों के
साये गुम हैं
बंद महल में
हाँ, हम तुम हैं
घने हवा के जंगल फिर भी
नन्हें पौधे क्यों गुमसुम हैं
चमकीले पिंजरे के भीतर
घुटा-घुटा-सा ये जीवन
दुनिया भर की
उथल-पुथल है
एक अकेला मेरा मन