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एक अदद तितली / अनिरुद्ध नीरव

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     पंखों पर
     जटगी के खेत लिए
     एक अदद तितली इस शहर में दिखी

इसके पहले ये मन
गाँव-गाँव हो उठे
नदिया के तीर की
कदम्ब छाँव हो उठे
     वक्ष पर
     कुल्हाड़ों की चोट लिए
     एक गाछ इमली इस शहर में दिखी

उठता है सूर्य यहाँ
ज्यों शटर दुकान में
गिरती है संध्या
रोकड़ बही मीजान में
     नभ के चंगुल में
     बंधक जैसी
     चंदा की हँसली इस शहर में दिखी

उत्तेजित भीड़ पुलिस
गलियाँ ख़ूनी हुईं
जब तक समझे क्या है
सड़कें सूनी हुईं
     और तभी
     होठों पर तान लिए
     एक नई पगली इस शहर में दिखी

विज्ञापन झोंक गए
हमको बाज़ार में
बंदी हैं पचरंगे रैपर में
जार में
     यहीं से सुदूर
     भरी लाई से
     बाँस बनी सुपली इस शहर में दिखी ।