भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक एक शख्स तौलती आंखें / प्रताप सोमवंशी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक एक शख्स तौलती आंखें
अनकहे राज खोलती आंखें

वैसे-वैसे वो भांप लेती है
जैसे-जैसे है डोलती आंखें

तुम जो बच्चों में झांककर देखो
हर जगह प्यार घोलती आंखें

जहां लफ्जों की खत्म सीमा है
उससे आगे है बोलती आंखे

इस दफा फिर ये हार जाएंगीं
दिलों में जहर घोलती आंखें