भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक कविता पंक्ति / स्नेहमयी चौधरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

न जाने कब से मैं

एक कविता-पंक्ति ले

यहाँ-वहाँ भटकी हूँ।


कल गर्मी थी :

धूप थी,तपन थी।

आज बरसात है :

ऊपर घिराव और नीचे गिजगिजाहट है।

कल ठण्ड हो जायेगी :

भाव,छन्द सब जमेंगे।


आह ! यह मेरी भटकती पंक्ति कविता की अकेली,

टूटी कड़ी-सी

अब किसी से न जुड़ पाएगी।