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एक खोयी हुई शाम की तलाश / अरविन्द श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
कायदे से इनदिनों
दुनिया में शाम नहीं हो रही
मोमबत्तियां पिघलने को तैयार
और काकी बैठी रही मुट्ठी में लिए माचिस
महानगरों में चाइनीज बत्तियों ने
शाम की कमर तोड़ दी है
जिंदल की भट्ठी में पिघल रहा है लोहा
गाँव के मरियल कुत्तों ने उबासी लेते हुए
देह को झाड़ा है अभी
अभी बैंकाक-पट्टाया की बालाओं नें
शहर को जगमगा दिया है
लास बेगौस में शाम नहीं होगी
घर लौटते कामगारों से
शहर की ट्राफिक व्यवस्था चरमरा चुकी है
अभी एलीट और कपटी किस्म के लोगों की आँखों में
शाम चमकने लगी है
जब पुटिया माय इधर उधर कामधाम निपटा कर
लौट रही होगी अपने घर
छोटी बिटिया को दूध पिलाने !