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एक गीत गाम केर / किसलय कृष्ण

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छै अंग-अंग उमंग भरल, सिहकैत स्वच्छन्द बसात छै
हे प्रिये, देखू कते उल्लसित मिथिलाक केहेन प्रभात छै...

मलिन मेघक ओहि छोर पर भ' गेलाहें चंद्रमा
नहुऐं सँ छिटकि रहलै, सगरे सुरूजक लालिमा...
मोन बहकल सुनिकय चहकल जे चिड़ै चुनमुनी
घंटी बाजल बरद केर आ बाछी केर रुनझुनी
कलकल करैत ई धार संग बिहुँसैत कोशीक कात छै
हे प्रिये, देखू कते उल्लसित मिथिलाक केहेन प्रभात छै...

मन्दिर में घंटी बजल आ महजिद में पड़लै अजान
माय-धिया सभ झुण्ड मे, चलली करय कातिक स्नान
मंगनू कक्का लोटा लेने, चलला दूधक ओरियान मे
बिलटू मरड़ मेटी पकड़ने, पहुँचि गेलाह बथान मे
परसैत सुगन्धि दलान पर, देखू फुलाएल पारिजात छै
हे प्रिये, देखू कते उल्लसित मिथिलाक केहेन प्रभात छै...

ओस भीजल दूभि आ छै साग सँ कियारी भरल
हरबाहा उठि भोरे कोना हर ल' कय खेत चलल
अहीं कहू ने ई दृश्य एहेन भेटत कतय प्रवास मे
अछि गाम बाट जोहि रहल, हमरे अहाँक आस मे
किसलय सुनू मिथिले बसू, कहैत ई गाछ आ पात छै
हे प्रिये, देखू कते उल्लसित मिथिलाक केहेन प्रभात छै...