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एक चांद : तीन चितराम / सांवर दइया
Kavita Kosh से
गाभा लाल
टीकी लाल
मांग में सिंदूर लाल
रंगां में उछाळा मारै रगत लाल
पम्पोळ बींरा गाल
बो बोल्यो-
भळै नैड़ी आव
बाथां रै बादळां में
लुकावूं थनै
ओ म्हारा चांद !
चांद सागी है
गोळ-गोळ…… पीळो-पीळो……
इन्नै दौड़ियो
बिन्नै दौड़ियो
लीर-लीर गाभा
तपती सड़क
पगां उबराणो
दिन भर घींस्यो गाडो
लुक्खा-सूखा टुक्कड़ चाबतो
आभै कानी कर आंगळी
बो बोल्यो-
सिक्योड़ो फलको तो
बो लटकै बठै !
चांद सागी है
गोळ-गोळ…… पीळो-पीळो……
दवा री शीशियां खाली
हींडिया करतो जिण में
तोतो सुर
वो हींडो खाली
एक्कानी पड़िया रोवै रमतिया
आ देख
चिंता करै बाप-
औ चांद ई खूटैला
जिंयां खूटग्यो
पीळियै में छोरो !
चांद सागी है
गोळ-गोळ…… पीळो-पीळो……