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एक टुकड़ा याद / प्रतिभा कटियार
Kavita Kosh से
एक याद
सपने की मानिंद
उतरती है
रोज़ पलकों में,
नींद की चाप
सुनते ही
पंखुड़ी-सी खुलने लगती है
आँखों में
रात भर गुनगुनाती है
मिलन के गीत,
दिखाती है सुंदर सपने
जिनमें होते हैं
न धरा, न आकाश
न फूल कोई, न मौसम
न पहाड़, न नदियाँ
बस एक टुकड़ा मैं
और एक टुकड़ा तुम ।
हर सुबह
मैं इसे ख़्वाब का
नाम देती हूँ ।