भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक टुकड़ा याद / प्रतिभा कटियार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक याद
सपने की मानिंद
उतरती है
रोज़ पलकों में,
नींद की चाप
सुनते ही
पंखुड़ी-सी खुलने लगती है
आँखों में

रात भर गुनगुनाती है
मिलन के गीत,
दिखाती है सुंदर सपने
जिनमें होते हैं
न धरा, न आकाश
न फूल कोई, न मौसम
न पहाड़, न नदियाँ
बस एक टुकड़ा मैं
और एक टुकड़ा तुम ।

हर सुबह
मैं इसे ख़्वाब का
नाम देती हूँ ।