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एक दिन - 2 / अज्ञेय
Kavita Kosh से
एक दिन
अजनबियों के बीच
एक अजनबी आ कर
मुझे साथ ले जाएगा।
-जिन अजनबियों के बीच
मैं ने जीवन-भर बिताया है,
जिस अजनबी से
मेरी बड़ी पुरानी पहचान है।
कौन है, क्या है वह, कहाँ से आया है
जो ऐसे में मुझे रखता है
परिचिति के घेरे में आलोक से विभोर?
जिस के ही साथ मैं चलता हूँ
जिस की ही ओर?
जिस का ही आश्रित, मानो जिस की सन्तान?
उसी परिचित के घेरे में
तुम्हें आमन्त्रित करता हूँ,
वरता हूँ :
आओगे?
मेरे मेहमान-एक दिन?
ग्वालियर, 6-7 सितम्बर, 1968