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एक दिन का अमोघ अस्त्र / पंखुरी सिन्हा
Kavita Kosh से
बनाकर कभी ढाल,
कभी तलवार,
आपके सबसे प्रिय व्यक्ति को,
जो गहरे भेद सके आपका अंतर,
वो करते हैं वार ।
जब रोज़ाना करते हों वार
और भोथरे हो गए हों,
आपके हाथ के सारे हथियार,
और सारी सोच सिमट गई हो,
सिर्फ़ एक ख़्वाहिश में,
कि पीठ पर एक तरकश हो,
उसमें ढेर सारे तीर ।
घंटों प्रार्थना में जुड़े रहने के बाद,
अब जब पीठ पर जकड़े हों हाथ
योगासन की मुद्रा में,
सारी सोच सिमट गई हो,
सिर्फ़ एक ख़्वाहिश में,
कि पीठ पर एक तरकश हो,
हाथ में एक खड्ग हो,
और युद्ध हो आमने-सामने ।
क्योंकि बनाकर कभी ढाल,
कभी तलवार,
आपके सबसे प्रिय व्यक्ति पर,
कोई करे रोज़ाना वार,
तो ये बातें बातों की नहीं,
ये बातें भोज की नहीं,
ये बातें युद्ध की हैं ।