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एक दीप तुम्हारे नाम / ओमप्रकाश सारस्वत
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मैंने बाला है
इच्छा का दीप
तुम्हारे पथ में उजियारा हो
हम इच्छा ही कर सकते
सुख की अभिलाषा की
बरना कोई-कौन
किसी का क्या कर सकता
जग में नित
मंगल-इच्छाओं के
दीपक जलते
अग्नि-पुत्र वे
मन के अंध-तमस् लोकों में
सूरज बन बलते
इसीलिए
मैंने बाला है
इच्छा का दीप
तुम्हारे पथ में उजियारा हो
वह दीपक
जो मैंने
सालों-साल सहेजा
सौंप दिया लो
आज अभी से
वह,प्रिय के तुम्हारा हो