एक दृष्टि / जया आनंद
मैं एक स्त्री
अपने पूरे व्यक्तिव
और अस्तित्व के साथ
अपने सपनों को
पंख देते हुए
सतरंगी दुनियाँ का
ताना-बाना बुनते हुए
अधुनिकता की परिभाषा रचते हुए
विचारों की लड़िया पिरोते हुए
स्नेहांगन में विचरते हुए
स्वदायित्वों को सहेजते हुए
अनेक पीड़ाओं से गुजरते हुए
आत्मचिंतन में लिप्त
जब देखती हूँ तुम्हारी ओर
तो पाती हूँ तुम्हें भी
अपनी इच्छाओं को दमित करते हुए
ज़िम्मेदारियों से जूझते हुए
घर परिवार की कमान सम्हालते हुए
सहचर की भूमिका निभाते हुए
स्नेहसिंचन करते हुए
संघर्ष पथ पर बढ़ते हुए
दर्द को भीतर समेटे हुए
अपने सम्पूर्ण पौरुष के साथ
मेरे सपने तुम्हारा आकाश
मेरा स्नेह तुम्हारा आँगन
मेरी अभिव्यक्ति तुम्हारे विचार
पूरक हैं एकदूसरे के,
मेरी पीड़ा तुम्हारा दर्द
मिलता हुआ एक सा
मैं स्त्री और तुम पुरुष
तुमसे फिर संघर्ष कैसा!
मैं स्त्री अपने अस्तित्व के साथ
और तुम अपने पौरुष के साथ!