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एक नई पुस्तक / रणजीत

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थोड़ी देर मैं उसके आवरण को देखता रहा
एक-दूसरे को संतुलित करते हुए दो शोख़ रंग ।

आवरण में से उसकी चिकनी जिल्द का एक हिस्सा दिखाई दिया
उसे पूरी तरह से देखने के लिए उत्सुक होकर
धीरे-धीरे मैंने उसका आवरण हटा दिया
अब वह मेरे सामने थी : सुन्दर और सुडौल
हल्के बादामी रंग का रेशमी रेग्जीन
उसके पूरे शरीर पर मढ़ा हुआ था ।

उलट-पलट कर उसे अच्छी तरह से देख लेने के बाद
- उसके गेटअप की प्रशंसा से परिपूर्ण -
मैं उसके मुखपृष्ठ की ओर बढ़ा ।

कितने दिनों से मैं उसकी खोज में था !
आज का पूरा दिन मुझे
उसे पढ़ने में ही लगाना था ।

मैंने प्रस्तावना शुरू कर दी
थोड़ी देर में मेरी अँगुलियाँ उसकी अनुक्रमाणिका पर थीं
मेरे जैसा सुहृदय-पाठक पाकर
जैसे वह भी उत्फुल्ल थी
गुलाब की पंखुड़ियों की तरह उसने अपने सारे पृष्ठ
निस्संकोच मेरे सामने खोल दिए
और मैं एक के बाद एक अध्याय आगे बढ़ता गया ।

बहुत देर उसमें डूबने-उतराने के बाद
अब मैं थकने-सा लगा था
और कैसी सुखद स्थिति थी
कि वह भी समाप्ति के निकट आ गई थी
यह देख कर मेरा उत्साह दुगुना हो गया
मेरी गति तेज़ हो गई
और अन्तिम अध्याय, मैंने एक ही झपाटे में पूरा कर डाला ।

एक नई पुस्तक

अब मैं उसमें डूबा हुआ था
एक अनिर्वचनीय सुख में निमग्न
उसकी गहराइयों को छूता हुआ ।

आह ! कितना आनन्ददायक था
उसे एक ही बैठक में अन्त तक पढ़ जाना
और फिर
उसकी मौलिकता और ताज़गी से अभिभूत
देर तक पड़े हुए उसके बारे में सोचते रहना ।