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एक पर सँ एक / कालीकान्त झा ‘बूच’

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ककरो सँ क्यो कम की गय
सबहक बड़के बमकी गय
भुट्टी पहिने टीक पकडलक
गरदनि दबलक नमकी गय
बेटा करय एक सिरसासन
जानै बाप बेरासी आसन
पुतहुक हाथ कौर अरगासन
सासुक मुँह कथौती वासन
सोझकी ठोकय ताल ताहि पर
नेड़री झाड़ै झमकी गय
एक टकाक मड़ुओ चिक्कस
बान्हि पतौरा रखलहुँ जेबी
गहुम प्रसाद तेल चरणोदक
विष्णुरूप डीलर के सेवी
परूका जे भेलै से भेलै -
हेतै असली एमकी गय
परजा प्राण तेयागल नेता
कहै जीवनक स्तर बढ़लै
परसन दैत-दैत भनसीए
अपने आब चूल्हि पर चढ़लै
बुरिबक बुझौ विकास मुँदा ई
थिकै बुखारक चमकी गय
जोन महग मालिक छै सस्ता
भोजन बन्न जिलेबी नस्ता
आगा सँ भऽ रहलै पक्का
पाछा टाट टुटल चैफक्का
मालकिनी मटकी मारै तऽ,
रहसै नौरिन छमकी गय
पोता हाथ सुपक्क सिनुरिया
बाबा माँगथि रऽसक गाड़ा
मोन पड़नि कोबरक खीर औ
पड़तनि पिण्ड लहरतनि सारा
बूढ़ी के लटकनि दू जुट्टी
कटलै केश जुअनकी गय