तुम्हे क्या लगता है
सभ्यता कहाँ से शुरू हुई
जब उसने खेत में हल चलाना शुरू किया
या जब उसने घर बनाया
या फिर तब
जब उसने पहली बार
देखा एक स्त्री को
उसकी सम्पूर्णता में
उसके जूड़े में एक चंपा का फूल सजाना चाहा
और महुए की गंध से
भर देना चाहा उसके होठों के चषक को
उसके उरोजों पर रख देनी चाही
अपने देह की सारी विह्वलता
और कमर पर
एक पूरी नदी का आलोड़न
उसके पुष्ट नितंबों को थाम
उसने महसूस किया
पृथ्वी के गर्म अलाव को
वह खड़ी रही
पैर के अंगूठे से
अपने ही देह की धरती कुरेदती
कि अकस्मात् वह आसमान बन गया
जाने कितने युग बीते
साँसों के आरोह अवरोह में
उस धरती ने पलाश की सौंधी गर्म उँगलियों से
अपने आसमान को बांधे रखा
आसमान ने भिगोये रखा
धरती को अपने आवेगों के सावन में
और क्षितिज तक
फ़ैल गयी
उनके उगाये हुए कनक की लहर
हाँ !
सभ्यता वही से शुरू हुई