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एक प्रचण्ड प्यास / सरोजनी साहू
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फाड़कर, मैं खड़ी हूँ
मुहूर्तों की सलाखों के पीछे
बंदी बन
समयहीन हो गई हूँ
मेरे सामने हो तुम
जागरण में
नींद में
सुख में
दुःख में
मगर भीषण ताप से
पसीना बह जा रहा है
इस शरीर से
दिल में जाग उठी
एक प्रचंड प्यास
मेरे सामने
वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़
मानो कुछ भी नहीं हैं।
सन क्लीनिक, कटक
भारत, पृथ्वी, ग्रह, तारा, आकाश
मानो कुछ भी नहीं हैं।
सिर्फ तुम हो
और मैं हूँ
मुहूर्तों की सलाखों के पीछे
बंदी बन
समयहीन हो गई हूँ
पर भीषण ताप से
पसीना बहा जा रहा है
इस शरीर से
दिल में जाग उठी है
एक प्रचंड प्यास।
मूल ओड़िया से अनुवाद : दिनेश कुमार माली