एक बच्चे के जन्म पर / विजेन्द्र
मैं इन आवाजों को सदियों से सुन रहा हूँ
ये मेरे पूर्वजों ने भी सुनी थी
ये मेरे वंशजों ने भी सुनी थी
ये आवाजें
धरती के गर्भ से उठती हैं
लोग इन्हें सुनते नहीं
वे इन्हें हमारे बीच फैलने नहीं देते
ये पूरी धरती को अपने में समेटना चाहती हैं
ये समुद्र की तरह विशाल और मरूस्थल की तरह
उत्तप्त
ये पठारों की तरह कठोर, पतझर की तरह सूखी
और वर्षा की तरह गीली।
मैंने कई बार इन्हें अपने निजी प्यार की संज्ञा दी है
आदमी के मुक्त होने से पूर्व सारा देश इन्हें हवाओं के साथ सुनता है
ये बाँक की तरह पैनी और फूलों की तरह नरम है
इन्हें घने जंगल कटते समय जाड़े की अँधेरी रात में सुना है
इन्हें बच्चों की हँसी, माँ के प्यार
और दोस्त की सच्चाई की तरह सुना है
इनमें हर बार लौह श्रृंखलाओं की आकृतियाँ उभरती हैं
डर से भागते पाँव की धमक, टूटी रस्सियों के छोर
और काँटेदार तारों के क्रूर-बाड़े।
इन्हें मैं सुनता हूँ
धातुओं के चुपचाप, चुपचाप पिघलने की बेचैनी में
जहरीले हथियारों से पड़े भद्दे निशानों की तरह।
मैं सुनता हूँ इन्हें
जब एक आदमी दूसरों के लिए फसल काट कर अपना जिस्म
सुखाता है
जब बड़ी-बड़ी इमारतें बनते वक्त मलबे से लाशें निकलती हैं
जब रात के चिल्ला जाड़े में खादर का किसान
खेत में पानी काटता है
जब माँ बच्चों को दूध पिलाती है
जब मैं तुम्हारे सूखे बालों में गुड़हल का फूल खौंसता हूँ
एक बच्चे के जन्म पर
जब सहसा धरती स्फूर्त हो उठती है
मैं सुनता हूँ उन्हें अपने कानों से
मैं छूता हूँ उन्हें अपनी प्यारी आँखों से
वे काले-काले नरकंकाल घने बालों से अपने जिस्म को ढँके
जंगलों में घूमते हैं
उनकी आकृतियों पर मेरे पूर्वजों के चिन्ह हैं
मेरे वंशजों, मेरे देश, मेरी धरती, जल
हवा
और झरनों के निशान हैं,
मैं सुनता हूँ उन्हें बिल्कुल अकेले
असंख्य लोगों के बीच
दुख और उदासी से मुर्झाए चेहरों की तरह शांत
डूबते सूरज की तरह लाल
उगते दिन की तरह खुशनुमा
और टूटी दीवार की तरह बेहाल।
मैं सुनता हूँ
सुनता हूँ
उन्हें सदियों से
इन्हें मेरे वंशजों ने भी सुना है
इन्हें मेरे पूर्वजों ने भी सुना है।
02-12-1979