भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक बुढ़िया का इच्छागीत / लीलाधर जगूड़ी
Kavita Kosh से
जब मैं लगभग बच्ची थी
हवा कितनी अच्छी थी
घर से जब बाहर को आई
लोहार ने मुझे दराँती दी
उससे मैंने घास काटी
गाय ने कहा दूध पी
दूध से मैंने, घी निकाला
उससे मैंने दीया जलाया
दीये पर एक पतंगा आया
उससे मैंने जलना सीखा
जलने में जो दर्द हुआ तो
उससे मेरे आँसू आए
आँसू का कुछ नहीं गढ़ाया
गहने की परवाह नहीं थी
घास-पात पर जुगनू चमके
मन में मेरे भट्ठी थी
मैं जब घर के भीतर आई
जुगनू-जुगनू लुभा रहा था
इतनी रात इकट्ठी थी ।