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एक बेर आरोॅऽ मौका देऽ / कस्तूरी झा ‘कोकिल’

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सुनलेहऽ काकी!
फेरू हाथौं भोट।
गाँमों में-
भोंपू बाजथौं।
सुनिहऽ गोली केऽ आवाज
तड़ातड़ बम्मों फुटथौं।
अहिनाँ भोटऽ सें
आबऽ बाज।
जीततोऽ केऽ,
हारतोऽ केऽ,
हमरा तोरा की काम?
बनैलकै नैं सड़क
गाड़लकै नै;
विजली केऽ खंभा।
ढिबरी बारी केऽ
पढ़ै छै छौड़ाँ।
छौड़ी घरहैं विराजै छै।
कत्ते दूर छै इसकूल?
केना कऽ भेजियै?
समय नींकऽ नैं छै।
केकरऽ भरोसऽ करबै?
सट्टी के-
काटी लेथौं करेजऽ।
रंग-विरंग केऽ-
गाड़ी अयथौं।
नेतवाँ कोऽल जोड़नैंह उतरथौं
कहथौं
मालिक छियै?
कहाँ गेलियै भैया?
तोही पार लगबैया।
हे माय, हे बहिन-
गलती करी दऽ माँफ
पकड़ै छिहौं कान।
बनाय देभौं सब काम।
लगाय देभौं बिजली,
गाँव में स्कूल।
नदिहौ पर पूल।
चकाचक सड़क
सब बनी जैते।
एक बेर आरो मौका देऽ
एक बेर आरो मौका देऽ
एक बेर आरो मौका देऽ
हे हमरऽ/माय-बाप/भाय-बहीन।

-अंगिका लोक/ अक्तूबर-दिसम्बर, 2008