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एक मनस्थिति का चित्र / दुष्यंत कुमार
Kavita Kosh से
मानसरोवर की
गहराइयों में बैठे
हंसों ने पाँखें दीं खोल
शांत, मूक अंबर में
हलचल मच गई
गूँज उठे त्रस्त विविध-बोल
शीष टिका हाथों पर
आँख झपीं, शंका से
बोधहीन हृदय उठा डोल।