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एक मातम में बुलाना चाहता हूँ / दिनेश जुगरान

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चाँद के एक कोने को
होंठों से छूकर
तुम बेसब्री से
उत्सव मनाना चाहते हो

मैं इस ज़मीन से
उठते धुएँ का
विष पीकर
इतिहास के हाथों को
काट कर तुम्हें
एक मातम में बुलाना चाहता हूँ

वे लोग
जो बच गए इस साल
उन्हें
मैंने आज ही सन्देशा भेजा है
आओ मिलें
फेल कर बैठें

इससे पहले यह लाल नदी
जो अब सड़कों पर बहने लगी है
हमें भी निगल ले

आओ
कुछ जिन्दा दृश्यों को
आकाश से छीन कर
अपनी मुट्ठियों में भर लें

बहुत सारे
थके हुए शहरों के
बहुत सारे डरे हुए लोगों का सन्नाटा
चीख कर निकलेगा
मेरी खाल के अन्दर से
जब मेरी बारी आएगी

उस खौलते सन्नाटे का
लेकिन होगा
एक निश्चित रंग