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एक मुर्दे का बयान / श्रीकांत वर्मा

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मैं एक अदृश्य दुनिया में, न जाने क्या कुछ कर रहा हूँ।
मेरे पास कुछ भी नहीं है-
न मेरी कविताएँ हैं, न मेरे पाठक हैं
न मेरा अधिकार है
यहाँ तक कि मेरी सिगरटें भी नहीं हैं।
मैं ग़लत समय की कविताएँ लिखता हुआ
नकली सिगरेट पी रहा हूँ।
मैं एक अदृश्य दुनिया में जी रहा हूँ
और अपने को टटोल कह सकता हूँ
दावे के साथ
मैं एक साथ ही मुर्दा भी हूँ और ऊदबिलाव भी।
मैं एक बासी दुनिया की मिट्टी में
दबा हुआ
अपने को खोद रहा हूँ।

मैं एक बिल्ली की शक्ल में छिपा हुआ चूहा हूँ
औरों को टोहता हुआ
अपनों में डरा बैठा हूँ
मैं अपने को टटोल कह सकता हूँ दावे के साथ
मैं ग़लत समय की कविताएँ लिखता हुआ
एक बासी दुनिया में
मर गया था।

मैं एक कवि था। मैं एक झूठ था।
मैं एक बीमा कम्पनी का एजेन्ट था।
मैं एक सड़ा हुआ प्रेम था
मैं एक मिथ्या कर्त्तव्य था
मौक़ा पड़ने पर नेपोलियन था
मौक़ा पड़ने पर शही द था।

मैं एक ग़लत बीबी का नेपोलियन था।
मैं एक
ग़लत जनता का शहीद था!