एक शाश्वत संवाद / प्रकाश मनु
(जे. स्वामीनाथन का चित्र देखकर)
हरियाली की आश्वस्ति-जैसे
भरे-पूरे रख्तों की रसान्वित दुनिया
कम-से-कम लाखों बरसों से
व्यस्त है लगातार
रचने में-
एक सार्वजनिक धनात्मक आस्था।
जो भी अन्तरवैभव रचता
है पेड़-
अविरल चुप्पी के प्रवाह में
उसे बहा कर
मुक्त होता है
सहज समर्पण की गरिमा से।
उस चुप्पी को
अर्थ देती हैं चिड़ियां
अपनी लहरदार
छूपछांही आवाजों से।
जितना उनके बस में है-
संप्रेषित जरूर करना चाहती हैं
हरेक कोशिश हरेक
सहनशीलता से।
चिड़ियों की भाषा सभ्य
चाहे नहीं,
किन्तु कृत्रिम भी वह नहीं है,
वहां हर शब्द अपना पर्याय
खुद है
यानि धूप-निर्बध खुली
जिन्दगी का मतलब है,
और छायाएं: स्मृति-पड़ाव।
अपनी छोटी-छोटी
सक्रियताओं
लोचदार उड़ानों, लहरीली आवाजों में-
चिड़ियां हमारे आसपास
हर समय
एक जरूरी कविता-द्वार हैं
जिन्दगी का।