भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एकटा सामान्य जंक्शन / यात्री

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एकटा सामान्य जंकशन
एकटा सामान्य ट्रेन
द0 पू0 रे0... द0 दू0 रे0... द0 पू0 रे0
अन्तिम श्रावण केर स्निग्ध आर्द्र परिवेश
निराकुल प्लेटफार्म
जनविरल मोसाफिरखाना
बीच बीचमेँ अवैत जाइए
गोटेक - आधेक आदिवासी चेहरा
केहन दीब लगइए ई
एकटा सामान्य जंक्शन
चुपचाप ससरि गेल
नजरिक सोझासँ
एकआ सामान्य ट्रेन

स्लीपिंक कोचक
समानान्तर बर्थ पर
सूतलि ओहिना, पहुँचि जइतो
ओ बेचारी कनी काल मेँ चाकुलिया
एखन उतरवा काल, अलक्षिते
नमस्कार क’ आएल छिअइन
ओहि सुमुखी - सुदर्शना केँ
मोन होइए रहि रहि
भने होइए अपना बर्थ पर पड़ले पड़ल
अवचेतनमेँ करैत ओहिना गपशप
चल गेल रहितहुँ चाकुलिया