भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एकतीस दिसम्बर / अष्टभुजा शुक्ल
Kavita Kosh से
एकतीस दिसम्बर है आज
इस महीने का चरम दिन
इस वर्ष को
अब कोई नहीं बचा सकता
आधी रात के बाद
न नोबल पुरस्कार डाक्टर
न अमृत
न ईश्वर
अन्तिम सिद्ध होगी यह रात
इस वर्ष के लिए
हर वर्ष
देती है जन्म
दिसम्बर को
और हर दिसम्बर की इकतीसवीं तारीख़
गला घोंट देती है
अपने वर्ष का ।