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एकसरि छलहुँ सुतलि हम सजनी गे / मैथिली लोकगीत
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मैथिली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
एकसरि छलहुँ सुतलि हम सजनी गे
मंदिर मुनल कपाट
विरह व्यथासँ बेघलि सजनी गे
आठ पहर जिब आंट
युवक बयस कत सुन्दर सजनी गे
अभरन अनुपम साज
धनुष-बाण कर पुहुपक सजनी गे
सपनहि देखल आज
कुंडल वलय हार पुन सजनी गे
कुसुमहि देल सजाय
पाँच वाण पुहुपक तनि सजनी गे
नहुयें नहुँ लग आय
नख शिख ताप मदन बुढु सजनी के
धधकल विरहक आगि
कुमर कठिन छल सपनक सजनी गे
कामिनि बैसलि जागि