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एतना बचन सीता सुनहु न पाओल / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

इस गीत में सीता स्वयंवर का उल्लेख हुआ है।

एतना बचन सीता सुनहु न पाओल, चलि भेली देबी के गोहारि हे।
देबी पुजैते सीता नजरी खिराओल<ref>चारों ओर नजर दौड़ाना</ref>, बाग बैठल दूनू भाइ हे॥1॥
देखहो सखी सब, जोगी एक उतरल, एक साँवर एक गोर हे।
जब रघुनन्दन सभा बीचे आयल, लोग सब करै किलोल हे॥2॥
हिनकहिं देखि के सभे लोक<ref>लोग</ref> हँसल, कौने पोसल दूनू भाइ हे।
हिनका<ref>इनके द्वारा</ref> ताय धनुख कैसे टूटत, एहो छिका बाल रघुराइ हे॥3॥
सबहिं भूप मिलि धनुखा उठायल, धनुखा भेल परबत हे।
कोपित लखन रघुबर के बुझाबै, उठू भैया तोरू धनुख हे॥4॥
कोपित रघुबर लखन बुझाबै, भूप भारी देखु सिसुपाल हे।
जऊँ हमें धनुख तोड़न हित जायब, लोग कहत सिया लोभ हे॥5॥
एहो कहिं के उठल रघुनन्दन, धनुखा लेल उठाय हे।
टूटल धनुख दहों<ref>दसों</ref> दिस छिलकल, सीता बेआहि घर जाय हे॥6॥

शब्दार्थ
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