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एम टीवी / बाजार में स्त्री / वीरेंद्र गोयल

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शास्त्रीय नृत्य की अदाएँ
विदेशी संगीत के साथ
कमीज के बटन खुले
बाल उलझे-पुलझे
शरीर पर चित्रकारी
कम-से-कम कपड़े
कैट वॉक करती हुई
गुजरती रहती है
कारों में, बाजारों में
एक-दूसरे की बाँहों में,
निगाहों में
धीमे-धीमे तैरते-से
गुरुत्वाकर्षणविहीन स्पेस में
सिसकियाँ भरते हुए
उड़ते हैं,
अवतरित होते हैं
पृथ्वी पर कहीं भी
एफिल टॉवर पर,
सन-फ्रांसिस्को के पुल पर,
ग्रेट कैनियान की पहाड़ी पर,
किसी भी खूबसूरत टापू पर,
क्रूज में,
बर्फीले पहाड़ों पर,
नदी में एक नाव पर,
अचानक बजने लगते हैं वाद्ययंत्र
खयाल सिर्फ मिलन का
रीत या विपरीत से
और कोई चाहत नहीं
सिवाय लौटने के कुम्भीपाक में
लोग भूखे मरें तो मरें
गरीबी से मरें तो मरें
उनकी बला से
उनकी गाड़ियों की कतार
टूटने में नहीं आती
उनके बँगलों पर भीड़
छँटने में नहीं आती।