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ऐश्ववर्य तो तुम्हें नहीं देगा यह / सुदीप बनर्जी

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ऎश्वर्य तो तुम्हें नहीं देगा यह जीवन
लगातार भटकते दुनिया भर में
तुम रह जाओगे अपने जीवन में

याद रह जाएगी कोई एक कविता
अपना आख़िरी दिनों का उदास चेहरा
उपहास करते दरख़्तों का दिन-रात उगना
जड़ों की शिराएँ तुम्हारे काँपते पैरों से
धरती के मर्मस्थल तक
आजीवन क्लान्ति के क्लेश पहुँचाती हुईं

ऎश्वर्य तो नहीं ही फिर भी
भाषाएँ नहीं होती खलास।

रचनाकाल : 1992