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ऐसा तो नहीं था / बोधिसत्व

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दिन भर खट कर सो रही है
बाल बिखरे हैं
चूड़ियाँ तितर-बितर हैं
हाथों पर बरतन मलने का निशान है
कुहनी पर लगा थोड़ा पिसान है,
नाखूनों पर कोई रंग नहीं है
पैरों में पड़ रही हैं बिवाइयाँ
माथे की बिंदी खिसक कर
बगल हो गई है
ऐसा लगता है
कुछ सोचते-सोचते सो गई है।
कुछ साल पहले
ऐसा न था
यही अंगुलियाँ होती थी कैसी
मूँगे कि टहनी जैसी
यही ललाट था स्वर्ण पट्टिका सा जगजगाता
यही करतल थे पद्म से सजे-धजे
यही चरणतल थे पल्लव से रक्तिम
यही नाखून थे दीप माला से कुंदन से
दिप-दिप करते
यही केश थे मह-मह लहराते नागफनी से
कुछ साल पहले ...... ऐसा न था

घर सँवारने में उलझ गई है ऐसे
कि अपने को सजाने का
ध्यान ही नहीं रह गया है
बदल गई है घर बसा कर इसकी दुनिया
सोई है खट कर दिन भर।