भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ऐसे भी / रेणु हुसैन
Kavita Kosh से
ऐसे भी जीना पड़ता है
ऐसे भी
दर्दो-ग़म सीने में दबाकर
पलकों में अश्कों को छिपाकर
अपनी जबां को सीना पड़ता है
ऐसे भी जीना पड़ता है
ऐसे भी
किसने हमारी उम्र चुराई
ख़्वाब चुराए, सांस चुराई
जीवन जैसे ज़हर का प्याला
पीना पड़ता है
ऐसे भी जीना पड़ता है
ऐसे भी