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ऑफ़िस-तंत्र-7 / कुमार अनुपम
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यहाँ तो ऐसा ही होता रहा है
आप नये हैं न जान जाएँगे यहाँ की कार्य-प्रणाली—
सर्वग्य भाव से भरे कुछ असमय-बुजुर्ग-युवा
अपनी गलतियाँ छुपाते हुए ऐसा दोहराते हैं जब तब
जो यहाँ हैं
वे यहीं थे जैसे अनन्तकाल से
जो यहाँ से किसी तरह विदा हुए
वे जैसे कभी थे ही नहीं स्मृतियों तक में
जो डटे हैं वे ऐसे हैं
जैसे यहीं रहेंगे अनन्तकाल तक...।