भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ओ मेरे देशवासी / ज्योत्स्ना मिश्रा
Kavita Kosh से
ओ! मेरे देशवासी
उन्होंनें तुम्हारे पडोसी को
तुमसे अलग कर दिया
दोनो से कहकर
कि बीच की दीवार पर तुम्हारा हक़ है
फिर उन्होंनें क़रार दे दिया
तुम्हारे सबसे क़रीबी दोस्त को
तुम्हारा दुश्मन!
कह कर कि
वो मिला हुआ है पडोसी से
फिर उन्होंने अनबन कराई तुम्हारी
तुम्हारे अध्यापक से
ये कहा कि,
उसने इतिहास ग़लत पढाया
फिर उन्होंने तुम्हारे भाई से
एक रोटी छीनकर
तुम्हारी भूख को दी
उसके बाद दूसरी और तीसरी
तुम्हारे लालच को
और इस तरह तुम्हारा भाई
तुमसे छीन लिया गया
अब वह फ़िराक़ में हैं
तुम्हें ही तुमसे छीनने की
वो ऐलान कर रहे हैं
कि सिर्फ़ वह ही तुम हैं
वो तुम बन जायेंगें
तो तुम कहाँ जाओगे?
मेरे देशवासी!