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ओढ़ कर बदलियां सी चला कीजिये / रमेश तन्हा

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ओढ़ कर बदलियां सी चला कीजिये
सोच की वादियों में रहा कीजिये।

मैं भी सोचूंगा मेरा चलन क्या रहा
आप भी अपना कुछ तज़ज़िया कीजिये।

कर भी लें हम ग़मों का मुदावा अगर
कुछ मगर कर न पाएं तो क्या कीजिये।

सिर्फ जीने से तो बात बनती नहीं
और कुछ भी तो इसके सिवा कीजिये।

रूहे-नज़्ज़ारगी अश्क़ बन जायेगी
अपने अहसास को आइना कीजिये।

मौत मांगे है, मेरी सुकूं-तिश्नगी
ज़िन्दगी के तक़ाज़ों का कग कीजिये।

पांव चादर से बाहर न निकलें कभी
इस तरह अपनी हाजत रवा कीजिये।

जिनका हल ही नहीं ऐसी बातों का भी
कुछ न कुछ हो रहेगा दुआ कीजिये।

जिस की जो चीज़ होगी वो ले जायेगा
गौर इस बात पर भी ज़रा कीजिये।

गर समंदर से मिलने की है आरज़ू
बन के नदिया की धारा बहा कीजिये।।

आंख में ख़्वाब हों ज़ेहन बेदार हो
सैर दुनिया की 'तन्हा' किया कीजिये।