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ओळूं में गळी / मदन गोपाल लढ़ा
Kavita Kosh से
निकळो चावै
दावै जकी
गळी सूं
घूम-फिर'र
पूग जावोला पाछा-
उणींज गळी में!
घर दांई
गळी ई तो बुलावै
गोद री प्रीत पाळती
ओदर जावै
जद नीं देखै आपनैं।
कांई दूर-दिसावर जायां पछै
आप पण करो चेतै-
गळी नैं इणींज भांत?