भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ओळ्यूं : तीन / ओम पुरोहित ‘कागद’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


नांव थांरो
कदै नीं बिसरै
जे बिसरै ई तो
आंख्यां रै काच
नाचतो ई रैवै
थांरो उणियारो!

आंख्यां में भंवतो
थांरो उणियारो
थंारी ओळ री
इकलग ओळ्यूं
जाणै भींत माथै
ठोक्योड़ी कोई
अदीठ कील!