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ओसीजणौ / चंद्रप्रकाश देवल
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किणी रै नेह माथै ओसीज्योड़ी
चीज-बसत हूं
जीवती-जागती
बोलमां पूरी व्हियां पैली
किण विध बोलूं
कील्योड़ा म्हारै बोलां में अरथ कठै?
कीकर ई परगटै पाछी
म्हारी सुचवायी वाचा
इण सारू
बोलमां परवांणै
नेह रौ पाछौ रातौमातौ व्हैणौ
उडीकौ
पण थांरौ कीं ओसीजज्यौ मती
म्हारा कवि माथै
पछै थें कविता सारू कांई करौला?
अर इण विध...