भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ओहो चणे वाले रे गलियों में आ के सोर किआ / हरियाणवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ओहो चणे वाले रे गलियों में आ के सोर किआ
बाबा बन्ने का बड़ा कमाऊ, भर भर थैली लाता है
दादी बन्ने की बड़ी चटोरी, भर भर डोने खाती है
चाटा पत्ता फेंक दिया रे, गलियों में आ के सोर किआ
आहो चणे वाले रे...
बापू बन्ने का बड़ा कमाऊ, भर भर थैली लाता है
अम्मा बन्ने की बड़ी चटोरी, भर भर डोने खाती है
चाटा पत्ता फेंक दिया रे, गलियों में आ के सोर किआ
आहो चणे वाले रे...
ताऊ बन्ने का बड़ा कमाऊ, भर भर थैली लाता है
ताई बन्ने की बड़ी चटोरी, भर भर डोने खाती है
चाटा पत्ता फेंक दिया रे, गलियों में आ के सोर किआ
आहो चणे वाले रे...