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औ मेरे शिश्मन्दिर / निदा नवाज़

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कौन तुम पर
फैंक गया यह पत्थर
आह !
मेरे शीशमन्दिर
मुझे दू:ख है
कि मैंने चढ़ाया था
एक स्मृति कलश
बिखर गया
सजाई थी
किसी के नाम की
एक प्रतिमां
जो टूट गई
आशाओं का
इक नादघंट था
गिर्र गया
हो गया सब कुछ
असिथर !
कौन तुम पर
फैंक गया यह पत्थर
आह !
मेरे शीशमन्दिर.