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औकात / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
मती बिलो
थोथो थूक
कोनी कुदरत स्यूं छानी
कोई री औकात
कर सकै तूं
मोटै गिगनार नै
कोटड़ी में बन्द
पण
उगा सकै बीं में
सूरज, चांद’र तारा
रच सकै बादळ’र
रामधणख
आ कोनी थारी
खिमता
जे राखी च्यावै स्यान
कयो मान
मत तेवड़ काम अणूंता