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और अपना एक कमरा / माधवी शर्मा गुलेरी
Kavita Kosh से
(वर्जीनिया वूल्फ़ को समर्पित)
आज कुछ लिखने का मन है
लिखने के लिए जो असबाब चाहिए
सब है मेरे पास
आराम से इतराता हुआ दिन
विचारावेश से घिरा दिमाग
उथल-पुथल भरा एक दिल
क़लम, क़ागज़
ज़हीन ख़याल
बेशुमार दौलत शब्दों की
और
एक अदद आराम-कुर्सी
मन:स्थिति भी
कि लिख सकूँ कुछ
अच्छा-सा अनवरत
सब है मेरे पास इस वक़्त
नहीं है बस
ढेर सारा पैसा
और एक
अपना कमरा।