भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

और कैरोसीन पानी में मिला / अभिषेक औदिच्य

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आग के सौदागरों की भीड़ है,
और कैरोसीन पानी में मिला।

गुरुकुलों की नींव में तेजाब है,
और बटुकों ने धतूरे खा लिए।
भाल का चंदन हटा कर यह किया,
रक्त से माथे सभी रंगवा लिए।
कान में विध्वंस के गुरुमंत्र भी,
धान के जैसे सभी रोपे गए।
शकुनियों ने हैं रचे षड्यंत्र जो,
दुधमुहों पर वे सभी थोपे गए।

कंठ में जिनके भरी बस आग है,
प्यास से उन अधमरों की भीड़ है।
और कैरोसीन पानी में मिला।

हाँ बबूलों की फसल बोई गई,
गुलमोहर की कोंपलें काटी गयीं।
पुस्तकों के वितरणों के नाम पर,
चौक पर कुछ बर्छियाँ बांटी गयीं।
जो जमीनें इसलिए एलॉट थीं,
आम के कुछ बाग रोपे जा सकें।
उन जमीनों पर उगाईं नागफनियाँ,
ताकि काँटे आज बहुमत पा सकें।

पूँछ पर बाँधे हुए चिंगारियाँ,
जंगलों में बंदरों की भीड़ है।
और कैरोसीन पानी में मिला।

जिन घरों के छप्परों में आग है,
उन घरों की ब्लॉक कर दीं टोटियाँ।
श्वेत वस्त्री दानवों ने फिर सभी,
स्वार्थों की सेंक लीं हैं रोटियाँ।
हो उजाला मांग है अँधियार की,
आग भड़का कर नहीं, यह शर्त है।
न्याय के खातिर लड़ो हम साथ हैं,
झूठ अपना कर नहीं, यह शर्त है।

पार्टियाँ 'लुटियंस' में हैं औ इधर,
आग में लिपटे घरों की भीड़ है।
और कैरोसीन पानी में मिला।