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औरंगज़ेब का मन्दिर / केशव तिवारी

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यहाँ नहीं उमड़ती श्रद्धालुओं की भीड़
या जुजबी ही, भटक आते हैं इधर
जबकि एक रास्ता इधर से भी जाता है

जर्जर देह एक बूढा पुजारी कपड़े में
लपेटे आलमगीर का फ़रमान
सन्दूकची में समेटे है
बड़े जतन से
इस बात का सबूत जिसे तारीख़
ज़ालिम कह नज़ीर देती है
उसका दिया भी कभी-न-कभी
धड़कता था दूसरों के लिए भी

महन्तों मठाधीशों के बीच
परित्यक्त यह बूढ़ा
यहाँ आपको बिना जात-पात पूछे
मिल सकता है भोजन
आप छहाँ सकते हैं
इस पुरनिया पेड़ की छाँह में |

सैकड़ों साल पुराने मन्दिर की रेह खाई दीवारों पर
टिका सकते हैं पीठ
गीता वेद रामायन श्रुतियों के साथ
एक साधु
लिए बैठा है एक बुतशिकन
बादशाह का फ़रमान

इतिहास की मोटी-मोटी किताबों में
तरह-तरह की कूट मंत्रणाओं के बीच
यह पन्द्रह लाईन का एक
अदना-सा-फ़रमान
तमाम धार्मिक उद्घोषों
जयकारों के बीच धर्म और इतिहास के मुहाने से
आती एक चीख़
तमाम ध्वंस अवशेषों से क्षमा मांँगती...

कोई सुने तो रुककर ।

सन्दर्भ - चित्रकूट में औरंगज़ेब द्वारा निर्मित बालाजी मन्दिर।